धूल की पतली चादर बदन पर लपेटे,
फीके पड़ते स्याह हर्फ़, वरफ पर समेटे,
ये पुस्तक बरसो पुरानी है,
लेकिन पहले सी ज्ञानी हैं ।
ये पिंजरे में कैद परिंदा हैं।
बेबस हैं, लेकिन ज़िंदा है
ये किताबें अभी ज़िंदा हैं।

जीवित है इनका ज्ञान अभी,
जीवित है पहचान अभी ।
अध्ययन के पथ पर मूक खड़ा,
जीवित है स्वाभीमान अभी ।।
अलमारी के बंद किवाड़ों में,
शायद कहने को ही जिंदा हैं,
पर किताबें अभी जिंदा हैं ।
ये किताबें अभी जिंदा हैं ।।

किताबें ज्ञानदायनी हैं,
साक्षात हंसवाहिनी हैं,
अज्ञानता से मूर्छित लक्षमण को,
संजीबनी है, प्राणदायानी हैं।
अर्जुन की हर एक उलझन में
ये गीता बनकर जिंदा हैं,
पर किताबें अभी जिंदा हैं ।
ये किताबें अभी जिंदा हैं।

किताबें पुरानी होती है,
किंतु ज्ञान ना पुराना होता है,
जरूरतमंद विद्यार्थी प्रायः,
किताबों के अभाव में जीता है,
उनका पढ़ने-लिखने का सपना,
तुम्हारी उदारता पर जिंदा है,
क्योंकि तुम्हारी पुरानी किताबें अभी जिंदा हैं।
ये किताबें अभी जिंदा हैं ।।

चल हाथ बढ़ा, चल कदम बढा,
हो अवलम्ब सा अब साथ खड़ा ।
अपनी चन्द पुरानी किताबों से,
साक्षरता के यज्ञ में आहूति चढ़ा ।
ले प्रण किसी की शिक्षा का,
यकीन कर तेरा ईमान अभी जिंदा है,
ये किताबें अभी जिंदा हैं ।
ये किताबें अभी जिंदा हैं ।।

                                                                                                                                                                     Poem By: Mrs. Meenakshi Panchal

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